
मिसाल के तौर पर चित्रकोट जलप्रपात के नजदीक स्थित तामर घूमर और नारायणपाल का मंदिर ।
हांलाकि इनके बारे मंे लोगों जानकारी जरूर है मगर वे ही लोग जा पाते है, जो स्थानीय लोगों के रिश्तेदार हों या फिर किसी ने उन्हें उक्त जगहों के बारे बताया हो।
चलिए ऐसे कुछ पर्यटक स्थलों के बारे मंे चर्चा करते हैं ।
तो शरूआत करते है
तामर घूमर
चित्रकोट जाने वाले हर पर्यटक को यहां जरूर आना चाहिए और यह चित्रकोट से महज 3 किमी दूर बारसूर रोड पर स्थित है । हांलाकि यहंा ठहरने खाने के लिए जगह नहीं है मगर पथरीली चट्टानों के बीच स्थित यह जलप्रपात एक एक भव्य नजारा दिखाता है। करीब 100 फीट की ऊंचाई से गिरते जल को देखना एक सुकून भरा अनुभव है जिसे निहारने के लिए लोग प्रतिदिन आते हैं । इस फाल से नीचे अगर आप उतरें तो आपको इसकी सुंदरता का अहसास होगा। घने जंगलों से घिरा पहाड़ पर यह नजारा काफी मजेदार लगता है।
नारायणपाल पाल मंदिर
1111 ई. सन में बना जिसका निर्माण छिंदक वंश के राजा ने करवाया है। यहां मौजूद शिलालेखों से ज्ञात होता है कि यह मंदिर के कुछ भाग का हिस्सा भगवान विष्णु और कुछ भाग भगवान लोकेश्वर को दान किया गया था।
जबकि दूसरे खंडित शिलालेख से यह पता चलता है कि यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित था जिसे रूद्रेश्वर मंदिर कहा गया है। लिखित दस्तावेजों के अनुसार यह मंदिर पहले भगवान शंकर को समर्पित था बाद में आने वाले राजाओं द्वारा इस मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित कर दिया गया और इसे फिर नारायण मंदिर कह जाने लगा। मंदिर में छिंदक राजा सोमेश्वर की माॅं गुण्डादेवी का शिलालेख है जो 11 वीं सदी है । इसे पुरातत्व विभाग ने संरक्षित घोषित किया गया है। पूरे मंदिर निर्माण नागर शैली में किया गया है जो 11 सदी की एक प्रचलित भवन निर्माण शैली थी मंदिर के अंदर एक अष्टकोणिय मंडप है और बेहतरीन मूर्तिकारी से पूरा मंदिर सजा हुआ है।
जबकि दूसरे खंडित शिलालेख से यह पता चलता है कि यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित था जिसे रूद्रेश्वर मंदिर कहा गया है। लिखित दस्तावेजों के अनुसार यह मंदिर पहले भगवान शंकर को समर्पित था बाद में आने वाले राजाओं द्वारा इस मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित कर दिया गया और इसे फिर नारायण मंदिर कह जाने लगा। मंदिर में छिंदक राजा सोमेश्वर की माॅं गुण्डादेवी का शिलालेख है जो 11 वीं सदी है । इसे पुरातत्व विभाग ने संरक्षित घोषित किया गया है। पूरे मंदिर निर्माण नागर शैली में किया गया है जो 11 सदी की एक प्रचलित भवन निर्माण शैली थी मंदिर के अंदर एक अष्टकोणिय मंडप है और बेहतरीन मूर्तिकारी से पूरा मंदिर सजा हुआ है।
चित्रधारा
यह प्रपात चित्रकोट के मार्ग पर है और 50 फीट की ऊंचाई से नीचे गिरता है। सीढ़ीनुमा आकर में गिरते हुए यह प्रपात बढ़ा ही मनोरम दृश्य देता है। यह पोटानार के दूरस्थ क्षेत्र में स्थित है। यहां पिकनिक के लिए लोग अक्सर यहां आते हैं
महेन्द्री जलप्रपात
यह भी चित्रकोट जलप्रपात के मार्ग पर स्थित है । जो 125 फीट की ऊंचाई से गिरते हुए बड़ा ही मनाराम दृश्य प्रस्तुत करता है।
चित्रकोट जलप्रपात का आनंद अधूरा ही रह जाता है अगर तामरघूमर, चित्रधारा और महेन्द्री प्रपात न देखें तो । जरूरत है इन जगहों पर भी तीरथगढ़ और चित्रकोट जलप्रपात की तरह पर्यटकों के लिए थोड़ी सुविधाएं दी मिल जाए तो क्या कहने ।
चित्रकोट जलप्रपात का आनंद अधूरा ही रह जाता है अगर तामरघूमर, चित्रधारा और महेन्द्री प्रपात न देखें तो । जरूरत है इन जगहों पर भी तीरथगढ़ और चित्रकोट जलप्रपात की तरह पर्यटकों के लिए थोड़ी सुविधाएं दी मिल जाए तो क्या कहने ।
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